Mission Aditya L1: आदित्य एल-1 के लॉन्च की तारीख हुई तय, जानें क्यों जरूरी है मिशन ‘सूर्य’ की स्टडी करना

Mission Aditya L1: चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने नए मिशन की तैयारी भी पूरी कर ली है। चंद्र मिशन की सफलता के बाद, भारत वह चौथा देश बन जाएगा जो सूर्य का अध्ययन करने में लगेगा। इससे पहले अमेरिका, रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियाँ पहले ही सूर्य की अनुसंधान कर चुकी हैं। उम्मीद है कि आगामी महीने, 2 सितंबर को इस मिशन का प्रक्षिपण किया जा सकता है।

अहमदाबाद के अंतरिक्ष एप्लीकेशन सेंटर के निदेशक, नीलेश एम. देसाई, ने न्यूज़ एजेंसी एनएनआई को आदित्य एल-1 के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने कहा, “हमने आदित्य-एल1 मिशन की योजना बनाई है और यह तैयार है। हमारी संभावना है कि हम इसे आगामी 2 सितंबर को लॉन्च करेंगे।”

ब्रिक्स सम्मेलन और ग्रीस की यात्रा के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत वापस आ गए हैं। भारत वापस आने के बाद, प्रधानमंत्री पहले बेंगलुरु पहुंचे और वहाँ एक भाषण दिया। नीलेश एम. देसाई ने प्रधानमंत्री के भाषण के बारे में कहा, “प्रधानमंत्री मोदी का भाषण बहुत प्रेरणादायक था। माननीय प्रधानमंत्री के भाषण से हम सभी को प्रेरणा मिली। उन्होंने 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस की घोषणा की, जो हम अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण है। चंद्रयान-3 की उत्तरधिकारी पर जहां उतरने की घोषणा की गई है, उसे ‘शिवशक्ति’ प्वाइंट कहा जाता है। इन घटनाओं ने हम सभी को अंतरिक्ष क्षेत्र में देश के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित किया है।”

आदित्य एल-1 मिशन

इसरो के मुताबिक, इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के क्रोमोस्फेयर और कोरोना की गतिविधियों, सूर्य के तापमान, कोरोनल मास इजेक्शन, कोरोना के तापमान, और अंतरिक्ष मौसम जैसे कई वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन करना है।

सूर्य मिशन का महत्व

सूर्य की सतह पर अत्यधिक उष्णता होती है। यहाँ की प्लाज्मा विस्फोट उष्णता का कारण होते हैं। प्लाज्मा के विस्फोट के कारण लाखों टन प्लाज्मा अंतरिक्ष में फैल जाता है, इसे कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) कहा जाता है। यह विकिरण ब्रह्मांड भर में फैल जाता है। कई बार, सीएमई धरती की दिशा में भी आता है, लेकिन आमतौर पर धरती की चुंबकीय क्षेत्र के कारण उसका धरती तक पहुंचना मुश्किल होता है। हालांकि, कई बार सीएमई धरती की आवृत्तिक तंतु में घुस जाता है और धरती की वायरलेंसी को प्रभावित करता है। इसलिए, आदित्य एल-1 मिशन को सूर्य के करीब भेजा जा रहा है, ताकि सीएमई और उसकी तीव्रता का आकलन किया जा सके जो सूर्य से आने वाले होते हैं। इसके साथ ही, विज्ञान की दृष्टि से भी इस मिशन के कई लाभ हो सकते हैं।

आदित्य एल-1 को पृथ्वी और सूर्य के बीच के लैग्रेंज प्वाइंट 1 पर प्लेस किया जाएगा। इसकी दूरी पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर है।

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